न्याय परिक्रमा न्यूज़ चंडीगढ़
छात्र – छा़त्राओं को विभिन्न प्रतियोगिताओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने का एक प्रयास आम मेला
चंडीगढ़, अच्छेलाल, पंचकूला के पिंजौर स्थित ऐतिहासिक यादविन्द्रा गार्डन में लगने वाला आम मेला आम जन के लिए काफी आकर्षण का केन्द्र होता है। इस मेला का मूल उद्देश्य लोगों की देशभर में पाई जाने वाली विभिन्न किस्मों के बारे में जानकारी देने के साथ लोगों को यह भी बताना है ंकि अगर आज की पीढ़ी नए पौधे नहीं लगाएगी तो आने वाले समय में हरियाली का अभाव से तो जूझना ही पड़ेगा साथ ही बढ़ते तापमान से दो चार होना पड़ेगा।
वर्ष 1992 में आम मेला लगना आरंभ हुआ होगा, तब ये शायद केवल लोगों को पर्यटन से जोड़कर मनोरंजन के लिए किया गया हो। परन्तु समय के साथ इसमें भी बढ़ौतरी हुई है। अब यह बागवानी, कृषि, पर्यटन, रोजगार परक बनता जा रहा है। अब बागवानी विभाग द्वारा आम के पौधों की देखरेख करने के प्रशिक्षण दे रहा है। वहीं पुराने पेड़ों को सहेजने की तकनीकों से भी अवगत करवा रहा है। कृषि क्षेत्र में अधिक से अधिक फलों के पौधे लगाने के लिए लोगों को बताया जा रहा है। वहंी आम से बने उत्पादों, शहद, ऐलोविरा , मशरूम सहित अन्य उत्पादों का प्रदर्शन कर लोगों को रोजगार मुहईया करवा रहा है। इन मेलों में पिछले कुछेक वर्षों में एक नई पहल की गई है कि आम उत्पादक अपने अपने स्थान से आम की विभिन्न किस्मो के पेड़ भी बेचते है। इससे उनकी आमदानी को बढ़ाने का एक नया स्रोत तो मिला ही है, वही साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी लोगों की भागीदारी सुनिश्चिित हो पा रही है।
इसी प्रकार बचपन से ही बच्चे आम सहित अन्य पेड़ों का संरक्षण करें तथा स्वयं भी पेड़ लगाएं इसके लिए भी आम मेंले में स्कूली विद्यार्थियों की विभिन्न प्रतियोगिताएं करवाई जाती है। इनमें मुख्यतः रंगोली, पेटिंग व ड्रªांईग, फेस पेटिंग, फैंसी ड्रैस, मेंहदी आदि द्वारा भी पर्यावरण से संबंधित विषयों से जोड़कर करवाई जाती है। जिससे बच्चों के अंर्तमन में बचपन से ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता व उत्सुकता बनी रहे। वे अपने नन्हें स्वरूप से ही धरती माता की सेवा करने के लिए आतुर रहें जिससे कि भविष्य में होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से बचाव संभव हो पाए।
बच्चों को इन मेलों में आकर यह भी समझ आती है कि ऑक्सीजन जो हमारी जीवनदायनी है हमें इन्हीं पेड़ों से प्राप्त होती है। जिसका आभास हम सबने पिछले कुछ दिनों में कारोना काल के दौरान किया। कोरोना में सभी ने यह समझा कि प्राकृति व प्राकृतिक वस्तुओं का हमारे जीवन में कितना महत्व है चाहे वो तुलसी का औषधीय पौधा हो या पपीते के पत्ते सभी हमें स्वास्थ्यवर्धक रखने में अति आवश्यक है। इसलिए इन्हें संरक्षित करना कितना जरूरी है, यही संदेश इन मेलों द्वारा दिया जा रहा है।
ब्यूरों रिपोर्टः कुमार योगेश /अच्छेलाल (चंडीगढ़)
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